मेरा नाम स्वेतंजलि झा है, और में IIH में पंचायत कोऑर्डिनेटर (PC) के पद पर काम करती हूँ | PC के तौर पर मुझे 4 पंचायत संभालने का ज़िम्मा दिया गया है, जिसमे चल रहे TB और मातृ नवजात स्वास्थ्य परियोजना (MNH) की सभी गतिविधियों को कोर्डिनेट करना होता है |
IIH एक समुदाय आधारित संस्था है , जिसका मतलब है सभी लाभार्थियों के साथ मिल कर काम करते हैं , और अपने काम का ज्यादातर समय समुदाय के बीच में रह कर बिताते हैं; जैसे TB परियोजना में संभावित TB रोगी खोजना , उनका सरकारी अस्पताल में जाँच और पुरे इलाज के दौरान उनकी मदद और काउन्सलिंग करना | मातृ और नवजात शिशु कार्यक्रम में हम सर्वे कर गर्भवती महिलाओं को खोजते है , हाई-रिस्क सभी गर्भवती की पहचान करना , नवजात बच्चे की देखभाल , इत्यादि तरीके से हमें फील्ड पे काम करना होता है | हमारा प्रमुख उद्देश्य है की समुदाय को गुणवत्ता पूर्ण सेवा प्रदान करना, और किसी भी लाभार्थी की अनिश्चित मृत्यु को रोकना |

परन्तु, अब COVID -19 वैश्विक महामारी के चलते भारत भी अब लगभग 5 हफ्तों से लॉकडाउन पे है , जिसके तहत सभी नागरिकों को घर के अंदर रहने की सलाह दी गई है, और केवल जरूरी सेवाएं चालू रहेंगी | लॉकडाउन के चलते सभी NGO को भी घर से काम करने की सलाह दी गयी है |
लॉकडाउन का सुनके मेरा पहला विचार था कि हम जितना भी काम करते हैं , सब फील्ड मैं करते है , फ़ोन पर यह सब कैसे संभव होगा? क्या क्या कठिनाई आएगी? कैसे उनसे निपटा जायेगा? ऐसे में लॉकडाउन शुरू हुआ ही था की एक हाई -रिस्क गर्भवती को आपातकालीन सहायता की ज़रुरत पड़ी|
सुनीता* 9 महीने की गर्भवती महिला है, उसको सुबह से ही हलका हल्का पेट में दर्द हो रहा था, लेकिन जब दर्द बरदाश्त के बाहर हो गया तो उन्होंने अंजू* जी को फ़ोन घुमाया | अंजू देवी पगडा में आशा के पद पर काम करती है | लॉकडाउन के चलते ना एम्बुलेंस का इंतज़ाम हो पाया , और पैसों के अभाव के कारण न किसी प्राइवेट गाड़ी का , ऐसी स्तिथि में सुनीता के चाचा उसको ठेला पे बैठा के नज़दीकी सरकारी अस्पताल लेके गए| जब सुनीता को बिना जटिलता के डिलेवरी हो गया, बच्चे ओर मां दोनों सही सलामत घर आ गए, तब राहत मिली| आम दिनों में ऐसे सभी इमरजेंसी केस हम शारीरिक और मानसिक तौर पे लाभार्थी के साथ रह कर हैंडल किया करते थे, चाहें सुबह 9 बजे हो या रात के 1 बजे |
इन सभी चुनौतियों में कई तरह की सीख भी छुपी थी , या कह सकते है सारगर्भित विचार छुपे थे; जैसे की तकनीकी तौर पे हम फ़ोन के इस्तेमाल से कैसे केस हैंडल कर सकते है भविष्य में | सामुदायिक तौर पे हमें सभी लाभार्थियों के साथ और ज़्यादा मेल – जोल बढ़ाना और उनका पूर्ण विश्वास जीतना होगा, और ऐसे परिस्तिथि के लिए तैयार करना होगा | आस-पड़ोस की वह महिलायें जो नि:स्वार्थ समुदाय की मदद के लिए तैयार हैं , उनको चिन्हित कर ट्रेंन करना होगा , जिससे समुदाय का सशक्तिकारण हो सके | कॉउंसलिंग के दौरान सभी लाभार्थियों को एम्बुलेंस के बारे में भी बताना होगा, प्राइवेट गाड़ियों के नंबर साझा कर उन्हें समझाना होगा की अपने स्वास्थ्य के लिए खुद से पहल कैसे करनी हैं |
स्थानीय स्वास्थ्य प्रणाली जैसे की ANM , प्रभारी के साथ अपना रिश्ता और मजबूत करने की जरुरत है ताकि किसी भी लाभार्थी को प्राइवेट डॉक्टर के पास जा कर बहुत सा पैसा खर्च करना न पड़े |
कुछ चीज़ो को घर बैठे फ़ोन के माध्यम से भी करना संभव नहीं है, जैसे की नवजात बच्चे में हाई- रिस्क को पहचानना क्यूँकि वाट्सएप्प वीडियो कॉल और ज़ूम कॉल जैसी सुविधाएँ अभी सभी गांव-घर में नहीं पहुंची है | एक PC के तौर पर भले ही मेरे फील्ड में जाना कम हुआ हो लेकिन ज़िम्मेदारियाँ कम नहीं हुई | आज भी सुबह से शाम फ़ोन के माध्यम से किसी प्रकार की परियोजना को लेके कोआर्डिनेशन चलता रहता है | इसमें कोई दोराय नहीं की लॉकडाउन के चलते हमें नए ढंग से काम करने की सीख मिली और सोचने का मौका मिला की हमेशा से चलते आ रहे काम को एक NGO कैसे नये रूप से देख सकता है |
* Names have been changed to protect identities of people.
Blog by: Shwetanjali Jha